मन्त्र जप के लिए तीन प्रकार की बैठकें

मन्त्र जप के लिए तीन प्रकार की बैठकें

उषाकाल तथा गोधूलि की बेला में एक रहस्यमय आध्यात्मिक वातावरण कर्मशील रहता है ओर एक अदभुत आकर्षण होता है । अतः इन दोनों संधिकालों में मन सीघ्र ही पवित्रता को प्राप्त होने लग जायगा । और सत्व से परिपूरित हो जायगा । सूरज निकलने और डूबने के समय चित्त को एकाग्र करना बहुत ही सुगम होता है । अतः जप का अभ्यास संधिकाल में करना चाहिए । इस समय चित्त एकदम शान्त और तजा होता है । अत: ध्यान लगने में सरलता होती है ध्यान जीवन का अनिवार्य उत्तरदायित्व है । इसके पश्चात तुम अपना आध्यात्मिक-कार्य समाप्त कर सकते हो । जब तुम चित्त के एकाग्र करने का अभ्यास आरम्भ करते हो, तो निद्रा का अवश्य आगमन होता है । इसलिए कम से कम ५ मिनट के लिए आसन ओर प्राणायाम करना अनिवार्य है । आसन ओर प्राणायाम करने से निद्रा का निवारण किया जा सकेगा । तुम जप तथा ध्यान सुगमतापूर्वक कर सकोगे ।

प्राणायाम करने के पश्चयात हमारा मन एकाग्रता की प्राप्त करने लगता है । इसलिए जब प्राणायाम समाप्त हो जाए तभी ध्यान तथा जप का अभ्यास करना चाहिए है । यद्यपि प्राणायाम का सम्बन्ध स्वास्थ से है, पर उससे हमारा मन भी एकदम स्वस्थ और ताजा हो जाता है । हमारे अन्दरूनी अंग भली-भांति कार्य करने लगते है । यह शारीरिक क्रियाओं में उत्तम क्रिया है ।

यदि तुम एक ही बैठक में मन्त्र का जप करते-करते थक जाओं तो दिन में दो या तीन बैठकें लगा लो । ब्रह्ममुहूर्त को चार बजे से सात बजे तक, संध्या को चार से पांच तक ओर रात्रि को छ: से आठ तक । जब तुम यह देखते हो कि तुम्हारा मन चंचल हो रहा है तो थोडी देर खूब जल्दी जल्दी जप करो । साधारणत: सबसे अच्छा तरीका है कि न तो बहुत् जल्दी ओर न बहुत धीरे जप करो मंत्र के अक्षरों का स्पष्ट उच्चारण करो । मन्त्र का जप अक्षर लक्ष पर करना चाहिए । अगर मंत्र मैं पांच अक्षर हैं तो उसका जप पांच लाख बार करो ।

यदि तुम किसी नदी के किनारे-झील या कुए पर मंदिर में, पहाड के नीचे, किसी सुन्दर वाटिका में या किसी अकेले शांत कमरे में जप करने बैठोगे तो चित्त वडी सुगम से एकाग्र हों जायगा और तुम्हे जप और ध्यान करने में कोई कठिनाई नहीं होगी । अगर तुम्हारा पेट खूब भरा है और तुम जप करने बैठ गए हो तो खूब गहरी नींद धर दबाएगी । अतः हल्का और सात्विक खाना खाओ । पहले कोई प्रार्थना करो तब जप के लिए बैठ जाओ । बस फिर तुम्हारा मन इस सांसारिक प्रवृत्ति से ऊपर उठ जाएगा ओर तुम्हे माला के दाने फेरने में बढा आनंद आएगा और कोई कठिनाई नहीं होगी । अध्यातमिक अभ्यास करते समय तुम्हे प्रत्येक दशा में अपनी बुद्धि से काम लेना चाहिए । कुछ समय के लिए तुम्हे हरिद्धार , बनारस, ऋषिकेश अदि जाना चाहिए ओर वहाँ गंगा के किनारे बैठ कर जप करना चाहए । तुम्हें ज्ञात होगा कि इस जप से तुम अध्यातमिक मार्ग पर कितनी प्रगति कर चुके हो । क्यों की ऐसे स्थानों पर तुम्हारा मन सांसारिक कार्यों, चिंताओं और परेशानियों से बिलकुल दूर होता है और इसलिए जप और ध्यान बडी अच्छी तरह से होता है । आध्यात्मिक डायरी में जप का हिसाब ररवो ।

प्रत्येक दिन के जप का हिसाब रखने के लिए एक आध्यात्मिक डायरी रखो । जब तुम जप करते हो तो तर्जनी का प्रयोग मत करो । सीधे हाथ का अंगूठा और मध्यमा का प्रयोग करना चाहिए है तुम अपने हाथ को किसी वस्त्र से ढक लो या उसको गोमुखी के अन्दर डाल लो, जिससे तुम्हे दूसरे लोग तुम्हे माल फेरते हुए न देख सकें । अन्तःकरण में आत्मा के दर्शन करो । अपने अन्दर ज्योति के दर्शन करो । अपने मन ओर उसकी वृत्तिर्यों की ध्यानपूर्वक देखो । कुछ देर किसी शांत कमरे में बैठो । जैसे मन विभिन्न प्रकार के भोजन चाहता है जैसे ही वह जप में भी वभिन्नता को पसन्द करता है । जव तुम्हारा मन मानसिक जप से उकता कर चलाय मन होने लगे, तो जोर जोर से जप करो । इससे कान भी मंत्र का वरण कर सकेंगे । अतः कुछ समय के लिए अब मन की एकाग्रता दृण को जाएगी । जोर जोर से जप करने से एक हानि यह है कि तुम लगभग एक ही घंटे में थक जाओगे । तुम्हें जप करने के तीनो विधियों से जप करते समय अपनी बुध्दि से काम लेना चाहिए । जो मनुष्य अभी साधना आरम्भ ही कर रहा है, उसके लिए मानसिक जप से प्रारम्भ करना दुष्कर होगा क्युकी अभी उसकी बुद्धि रुथूल है ।

राम के मन्त्र का जप हर श्वास के साथ हो सकता है । जो जप विना होठ हिलाए होता है, उसे अजपाजप – कहते है । जब तुम अन्दर साँस लेते हो तो मन में रा कहो और जव सांस बाहर निकालते हो तो म कहो । चंलते समय भी इस प्रकार के जप का अभ्यास करते रहो । कुछ लोगो के लिए यह उपाय सुगम प्रतीत होगा । ध्यान करते समय कमरे के अंदर भी तुम इसका अम्यास कर सकते हो । यही राम के मन्त्र के जप का अजपाजप है ।

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